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कविता: भारत के नए अछूत की व्याख्या

नए अछूत" शीर्षक से प्रस्तुत यह कविता, सवर्ण समाज के उन आक्रोश और पीड़ा को व्यक्त करती है, जो आज के सामाजिक और कानूनी ढांचे में उनके अस्तित्व को चुनौती देती है। इस कविता के माध्यम से लेखक ने सवर्ण समाज की वर्तमान स्थिति को एक भावनात्मक रूप में प्रस्तुत किया है, जिसमें वे स्वयं को नए युग के अछूतों के रूप में देखते हैं। 
कविता में सवर्ण समाज के संघर्षों, उनके त्याग, और राष्ट्र के प्रति उनकी निष्ठा को प्रमुखता से उभारा गया है। लेखक यह दर्शाते हैं कि कैसे आज के नियम और कानून उनके खिलाफ जा रहे हैं और कैसे वे स्वयं को अपने ही देश में परायापन महसूस कर रहे हैं। 

कविता में सवर्ण समाज के उन अभिमान, त्याग, और बलिदानों का भी उल्लेख है, जिन्होंने राष्ट्र की सेवा में अपना जीवन समर्पित किया है। परंतु आज के समय में वे स्वयं को उपेक्षित और तिरस्कृत महसूस कर रहे हैं। 

यह कविता सवर्ण समाज के उन लोगों के लिए एक आवाज़ है, जो अपनी प्रतिष्ठा, गौरव, और अस्तित्व की रक्षा के लिए संघर्ष कर रहे हैं। कविता की प्रत्येक पंक्ति में एक गहरा संदेश छिपा है, जो समाज में व्याप्त असंतुलन और भेदभाव को उजागर करता है।


नए अछूत: सवर्ण समाज के संघर्ष की पुकार

साहित्य और कविता हमेशा से समाज के मनोभावों और संघर्षों को व्यक्त करने का एक सशक्त माध्यम रही है। "नए अछूत" शीर्षक से लिखी गई यह कविता भी इसी प्रकार का एक प्रभावशाली प्रयास है, जो सवर्ण समाज के सदस्यों के भीतर व्याप्त आक्रोश और असंतोष को अभिव्यक्त करती है।

कविता के माध्यम से यह स्पष्ट किया गया है कि सवर्ण समाज, जो कभी भारत के निर्माण और संरक्षण में अग्रणी था, आज के सामाजिक और कानूनी ढांचे में स्वयं को उपेक्षित और अछूत महसूस कर रहा है। इस कविता में, सवर्ण समाज के त्याग और बलिदान को भी प्रमुखता से उभारा गया है, जिनके माध्यम से उन्होंने राष्ट्र की सेवा की है।

लेखक ने वर्तमान सामाजिक स्थिति को बड़े ही प्रभावशाली ढंग से उजागर किया है, जहाँ सवर्ण समाज के लोग अपने अधिकारों से वंचित और अन्याय का शिकार हो रहे हैं। कविता में वर्णित 'नए अछूत' का अर्थ उन लोगों से है, जो आज के समय में सामाजिक और कानूनी रूप से हाशिए पर खड़े महसूस कर रहे हैं। 

कविता की पंक्तियाँ सवर्ण समाज के उन लोगों के मन में गहराई से व्याप्त पीड़ा और असंतोष को उजागर करती हैं, जो अपने अस्तित्व और अधिकारों के लिए संघर्ष कर रहे हैं। कविता की प्रत्येक पंक्ति में एक दर्दभरी सच्चाई छिपी है, जो आज के समय में सवर्ण समाज के लिए एक बड़ी चुनौती है।

कविता का संदेश स्पष्ट है: समाज में व्याप्त भेदभाव और अन्याय के खिलाफ आवाज उठाना और अपने अधिकारों के लिए संघर्ष करना आवश्यक है। "नए अछूत" कविता सवर्ण समाज के उन संघर्षों की गाथा है, जो उनके गौरव और अस्तित्व की रक्षा के लिए लड़ी जा रही है। यह कविता सवर्ण समाज के हर उस व्यक्ति के लिए एक प्रेरणा स्रोत है, जो अपने अधिकारों के लिए खड़ा होना चाहता है। 

इस प्रकार, "नए अछूत" केवल एक कविता नहीं है, बल्कि यह सवर्ण समाज के संघर्ष, पीड़ा, और असंतोष की एक भावनात्मक आवाज़ है, जो समाज में बदलाव और न्याय की माँग करती है।

*नए अछूत* 

हमको देखो हम सवर्ण हैं
भारत माँ के पूत हैं,
लेकिन दुःख है अब भारत में,
हम सब 'नए अछूत' हैं;

सारे नियम और कानूनों ने,
हमको ही मारा है;
भारत का निर्माता देखो,
अपने घर में हारा है;
नहीं हमारे लिए नौकरी,
नहीं सीट विद्यालय में;
ना अपनी कोई सुनवाई,
संसद में, न्यायालय में;
हम भविष्य थे भारत माँ के,
आज बने हम भूत हैं;
बेहद दुःख है अब भारत में;
हम सब 'नए अछूत' हैं;

'दलित' महज़ आरोप लगा दे,
हमें जेल में जाना है;
हम-निर्दोष, नहीं हैं दोषी,
यह सबूत भी लाना है;
हम जिनको सत्ता में लाये,
छुरा उन्हीं ने भोंका है,
काले कानूनों की भट्ठी,
में हम सब को यूं झोंका है;
किसको चुनें, किन्हें हम मत दें?
सारे ही यमदूत हैं;
बेहद दुःख है अब भारत में;
हम सब 'नए अछूत' हैं;

प्राण त्यागते हैं सीमा पर,
लड़ कर मरते हम ही हैं;
अपनी मेधा से भारत की,
सेवा करते हम ही हैं;
हर सवर्ण इस भारत माँ का,
एक अनमोल नगीना है;
अपने तो बच्चे बच्चे का,
छप्पन इंची सीना है;
भस्म हमारी महाकाल से,
लिपटी हुई भभूत है;
लेकिन दुःख है अब भारत में,
हम सब 'नए अछूत' हैं..

 *देकर खून पसीना अपना,
इस गुलशन को सींचा है;
डूबा देश रसातल में जब,
हमने बाहर खींचा है;
हमने ही भारत भूमि में,
धर्म-ध्वजा लहराई है;
सोच हमारी नभ को चूमे
बातों में गहराई है; 
हम हैं त्यागी, हम बैरागी,
हम ही तो अवधूत हैं;
बेहद दुःख है अब भारत में,
हम सब 'नए अछूत' हैं* 🙏🏻

समस्त सवर्ण समाज के सभ्य बंधुओ को समर्पित, कृपया इस कविता को अपने सभी मित्रों को पोस्ट जरूर करें
             हृदेश तिवारी

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